कहते हैं — इंसान की असली पहचान तब सामने आती है जब वो किसी को पाने या खोने के डर में होता है।
प्यार जब पवित्रता की हदें पार कर जाता है, तो वही प्यार एक जुनून बन जाता है... और फिर उस जुनून में इंसान सही और गलत का फ़र्क भूल जाता है।
उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में हाल ही में कुछ ऐसा ही हुआ — जहाँ एक पत्नी ने अपने ही पति की हत्या की साजिश रच डाली... और वो भी उस शख्स के साथ, जिसे वो सिर्फ़ एक इलैक्ट्रिशियन बताती थी।
लेकिन जैसा कहते हैं — कभी-कभी किस्मत भी इंसान के प्लान से बड़ी होती है...
और इस बार, मौत के जाल में फँसने से पहले ही सच सामने आ गया।
यह कहानी है बरेली के सुभाषनगर की — एक शांत और पॉश इलाका, जहाँ रहती थी एक हाई-प्रोफाइल फैमिली...
स्वास्थ्य विभाग से सेवानिवृत्त नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. विशाल सक्सेना, उनकी पत्नी शिखा सक्सेना, और परिवार के बाकी सदस्य।
डॉ. विशाल सक्सेना, अपने इलाके के एक जाने-माने डॉक्टर थे — शांत, सौम्य और सामाजिक। उनकी उम्र थी लगभग 60 साल।
लेकिन उनके जीवन में एक तूफान आने वाला था... ऐसा तूफान, जिसकी जड़ें उनके अपने ही घर में थीं।
डॉक्टर की पत्नी शिखा सक्सेना, जिनकी उम्र 57 साल थी।
वक़्त के साथ पति-पत्नी के बीच थोड़ी दूरी आ गई थी।
इसी दौरान शिखा की मुलाक़ात हुई सौरभ सक्सेना से — एक 47 साल के बिजली मिस्त्री से।
शुरुआत में सौरभ उनके घर में काम करने आता-जाता था।
लेकिन धीरे-धीरे ये रिश्ता मरम्मत से आगे बढ़कर मोहब्बत की मरम्मत तक पहुँच गया।
शिखा सौरभ के साथ घंटों फोन पर बात करने लगीं, और दोनों का रिश्ता गहराता चला गया।
कहते हैं, उम्र सिर्फ़ एक नंबर होती है — लेकिन जब दिल बहक जाए, तो अंजाम का अंदाज़ा किसी को नहीं रहता।
प्यार का ये रिश्ता अब शिखा के लिए जुनून बन चुका था।
उन्हें अपने पति विशाल सक्सैना अब बोझ जैसे लगने लगे थे।
क्योंकि विशाल अब सौरभ और शिखा के मिलन के बीच बाधा बनने लगे थे।
और फिर, एक दिन दोनों ने मिलकर एक ऐसा प्लान बनाया... जो सुनकर किसी की भी रूह काँप जाए।
प्लान था — डॉक्टर विशाल की हत्या का।
दोनों ने तय किया कि डॉक्टर को घर में ही खत्म कर दिया जाएगा, ताकि किसी को शक न हो।
सौरभ ने पहले से तैयारी कर रखी थी — रस्सी, टेप, और नशे की दवाइयाँ।
28 अक्टूबर की रात, उन्होंने प्लान को अंजाम देने का निश्चय किया।
28 अक्टूबर की रात… सुभाषनगर का माहौल शांत था।
डॉक्टर विशाल अपने कमरे में थे, और बाहर सौरभ धीरे से अंदर घुस आया।
घर के सभी CCTV कैमरे पहले ही बंद कर दिए गए थे — ताकि कोई सबूत न बचे।
शिखा ने अपने पति को कुछ पीने को दिया, जिसमें नशे की दवा मिली हुई थी।
डॉक्टर को नींद आने लगी, और तभी सौरभ ने उनका हाथ-पैर बाँध दिया।
योजना थी — उन्हें मारकर सबूत मिटा देना।
लेकिन किस्मत के खेल भी अजीब होते हैं...
हत्या से ठीक पहले, शिखा ने सौरभ को शराब पिलाई — शायद “कामयाबी” की खुशी में।
लेकिन शराब इतनी ज़्यादा हो गई कि सौरभ खुद ही बेहोश होकर कुर्सी पर गिर पड़ा।
डॉक्टर विशाल सक्सैना, जिनके हाथ-पैर बंधे थे, नशे की दवा का असर धीरे धीरे ख़त्म हो गया था। मौके की नज़ाकत को भांपने में उनको देर न लगी ,पूरी ताकत लगाकर विशाल खुद को छुड़ाने की कोशिश करने लगे।
उन्हें समझ आ गया था कि उनकी पत्नी और सौरभ उन्हें मारने की साजिश रच चुके हैं।
जब शिखा बाथरूम गई, उसी वक्त विशाल ने मौका देखा — और किसी तरह घर से बाहर भाग निकले।
हाथ और गले में रस्सी बंधी थी, मगर जान बच गई।
घर के CCTV कैमरे बंद कर दिए गए थे, लेकिन साजिश करने वालों से एक गलती हो गई।
पड़ोसियों के कैमरों ने सब कुछ रिकॉर्ड कर लिया था।
डॉक्टर का घर से भागना, मदद के लिए पुकारना, और उस रात सौरभ का आना-जाना — सब कैमरे में कैद हो गया।
इसी सबूत के सहारे डॉक्टर विशाल ने अगले ही दिन पुलिस ऑफिस पहुँचकर शिकायत दर्ज कराई।
जैसे ही मामला पुलिस के पास पहुँचा, पूरा बरेली शहर हिल गया।
क्योंकि यह मामला एक हाई-प्रोफाइल फैमिली से जुड़ा था।
एसपी सिटी मानुष पारीक ने तुरंत FIR दर्ज करवाई और जांच शुरू कर दी।
डॉक्टर विशाल ने पुलिस को रस्सी, टेप और चाकू जैसे सबूत सौंपे — जो उसी रात घर से मिले थे।
पुलिस ने कहा, “शिकायत के आधार पर जांच जारी है... सच सामने लाया जाएगा।”
जांच के दौरान पता चला कि घटना के बाद से ही शिखा सक्सेना और सौरभ सक्सेना दोनों लापता हैं।
पुलिस दोनों की तलाश में जगह-जगह छापेमारी कर रही है।
डॉक्टर का बेटा भी इस बीच सामने आया — उसने अधिकारियों से मुलाकात की और अपने पिता की सुरक्षा की गुहार लगाई।
बरेली की पुलिस के लिए यह केस सिर्फ़ एक “मर्डर अटेम्प्ट” नहीं, बल्कि विश्वासघात और जुनून की कहानी बन चुका था।
इस घटना ने पूरे शहर को झकझोर दिया।
क्योंकि यह किसी छोटे-मोटे झगड़े की बात नहीं थी — यह एक ऐसे रिश्ते का अंधेरा था, जिसमें प्यार के नाम पर धोखा, लालच और हिंसा सब कुछ शामिल था। जहां न उम्र का लिहाज था और न अपनी इज़्ज़त प्रतिष्ठा का।
आज के समय में रिश्ते केवल भावनाओं पर नहीं, बल्कि स्वार्थ, दिखावे और वासनाओं के जाल में उलझते जा रहे हैं। ऊपर से देखने पर सब कुछ सामान्य लगता है — मुस्कुराते चेहरे, साथ बिताए पल, एक-दूसरे के लिए किए गए वादे। लेकिन जब उस नकली मुस्कान के पीछे झांका जाए, तो अक्सर एक ऐसा अंधेरा दिखता है जो किसी छोटे-मोटे झगड़े का परिणाम नहीं होता, बल्कि एक गहरे और सड़ चुके रिश्ते का सच होता है।
प्यार, जो कभी त्याग और विश्वास का प्रतीक माना जाता था, अब कई बार धोखे और लालच का माध्यम बन गया है। रिश्ते में जहां सच्चाई और ईमानदारी होनी चाहिए, वहां आज झूठ और दिखावा पनप रहा है। कई बार लोग प्यार के नाम पर अपने फायदे की सोचते हैं — आर्थिक सुरक्षा, सामाजिक प्रतिष्ठा या शारीरिक आकर्षण। ऐसे में रिश्ते का असली सार — एक-दूसरे के प्रति सम्मान और विश्वास — कहीं खो जाता है।
जब प्यार में स्वार्थ घुस जाता है, तो धीरे-धीरे वह रिश्ता जहरीला हो जाता है। धोखे की शुरुआत झूठे वादों से होती है, फिर लालच उस झूठ को मजबूती देता है, और अंत में हिंसा — चाहे मानसिक हो या शारीरिक — उस रिश्ते को पूरी तरह तोड़ देती है। यह हिंसा केवल शरीर पर नहीं, बल्कि आत्मा पर भी होती है। व्यक्ति खुद से नफरत करने लगता है, अपनी पहचान खो देता है और एक ऐसे चक्रव्यूह में फंस जाता है, जिससे बाहर निकलना आसान नहीं होता।
ऐसे रिश्तों में न उम्र का लिहाज होता है, न इज़्ज़त और प्रतिष्ठा का। अक्सर देखा जाता है कि शिक्षित, सामाजिक रूप से सम्मानित लोग भी ऐसे जाल में फंस जाते हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि हिंसक या विषैले रिश्ते किसी एक वर्ग तक सीमित नहीं हैं। कई बार लोग "लोग क्या कहेंगे" के डर से या समाज में अपनी छवि बचाने के लिए ऐसे रिश्तों को सहते रहते हैं, जबकि भीतर ही भीतर टूटते जाते हैं।
यह अंधेरा केवल दो व्यक्तियों के बीच का नहीं होता, बल्कि इसका असर पूरे परिवार और समाज पर पड़ता है। बच्चे ऐसे माहौल में बड़े होते हैं जहां प्यार और हिंसा का फर्क मिट जाता है, और वे भविष्य में या तो उसी हिंसा को दोहराते हैं या उससे डरकर खुद को भावनात्मक रूप से अलग कर लेते हैं।
जरूरत है कि हम रिश्तों के इस अंधेरे को पहचानें — समझें कि प्यार का मतलब नियंत्रण नहीं, बल्कि आज़ादी और सम्मान है। किसी भी रिश्ते में यदि धोखा, लालच या हिंसा है, तो वह रिश्ता नहीं, एक बंधन है जो आत्मा को कैद कर देता है। ऐसे में साहस करके उस अंधेरे से बाहर निकलना ही असली मुक्ति है।
कभी जो पति-पत्नी एक-दूसरे की जान थे, अब एक ने दूसरे की जान लेने की साजिश रच डाली।
और वह भी, एक ऐसे व्यक्ति के साथ जो कभी उनके घर का काम करता था।
यह कहानी सिर्फ़ बरेली की नहीं है…
यह कहानी है उस सोच की, जहाँ मोहब्बत की जगह अब मालिकियत और मतलबीपन ने ले ली है।
कभी-कभी ज़िंदगी हमें पहले ही चेतावनी दे देती है —
असली चेहरे हमेशा मुस्कान के पीछे छिपे नहीं रहते, बस हमें देखने की नज़र चाहिए।
डॉक्टर विशाल की जान तो बच गई, लेकिन उस एक रात ने उनकी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल दी।
अब उनका भरोसा, उनका घर, और उनका सुकून — सब कुछ टूट चुका है।
पुलिस की जांच जारी है, और जल्द ही सच अदालत के सामने होगा।
लेकिन इस कहानी से समाज को जो सबक मिला — वो इससे कहीं बड़ा है।
मैं हूँ सचिन शर्मा,
मिलते हैं एक और सच्ची कहानी में...
तब तक सुरक्षित रहिए, और अपने रिश्तों की कीमत समझिए।
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