कहते हैं — इंसान की असली पहचान तब सामने आती है जब वो किसी को पाने या खोने के डर में होता है। प्यार जब पवित्रता की हदें पार कर जाता है, तो वही प्यार एक जुनून बन जाता है... और फिर उस जुनून में इंसान सही और गलत का फ़र्क भूल जाता है। उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में हाल ही में कुछ ऐसा ही हुआ — जहाँ एक पत्नी ने अपने ही पति की हत्या की साजिश रच डाली... और वो भी उस शख्स के साथ, जिसे वो सिर्फ़ एक इलैक्ट्रिशियन बताती थी। लेकिन जैसा कहते हैं — कभी-कभी किस्मत भी इंसान के प्लान से बड़ी होती है... और इस बार, मौत के जाल में फँसने से पहले ही सच सामने आ गया। यह कहानी है बरेली के सुभाषनगर की — एक शांत और पॉश इलाका, जहाँ रहती थी एक हाई-प्रोफाइल फैमिली... स्वास्थ्य विभाग से सेवानिवृत्त नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. विशाल सक्सेना, उनकी पत्नी शिखा सक्सेना, और परिवार के बाकी सदस्य। डॉ. विशाल सक्सेना, अपने इलाके के एक जाने-माने डॉक्टर थे — शांत, सौम्य और सामाजिक। उनकी उम्र थी लगभग 60 साल। लेकिन उनके जीवन में एक तूफान आने वाला था... ऐसा तूफान, जिसकी जड़ें उनके अपने ही घर में थीं। डॉक्टर की पत्नी शिखा ...
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Showing posts from November, 2025
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जयपुर शहर के पुराने हिस्से में एक बड़ा रेलवे स्टेशन था — “जयपुर जंक्शन।” हर सुबह जब सूरज की पहली किरण लाल पत्थरों पर पड़ती, तो स्टेशन की सीढ़ियों पर बैठा एक दुबला-पतला किशोर आंखें मलते हुए उठता। उसका नाम था आरिफ़। वह लगभग सत्रह साल का था, पर चेहरा समय से बहुत बड़ा लगने लगा था। पिता सालों पहले गुजर गए थे, माँ बीमार रहती थी, और घर चलाने की जिम्मेदारी उसी पर थी। आरिफ़ स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर पुराने जूते पालिश करता था। लोगों के चमकते जूते देखकर उसे लगता, “काश मेरी ज़िंदगी भी इन जूतों की तरह चमक पाती।” कभी-कभी कोई यात्री उसे दो रुपये ज़्यादा दे देता तो वह खुश होकर घर लौटता, माँ के लिए दवा खरीदता और बाकी पैसे मिट्टी के गुल्लक में डाल देता। एक दिन सर्दियों की सुबह, स्टेशन पर हल्की धुंध थी। ट्रेन “अजमेर एक्सप्रेस” रुकी ही थी कि भीड़ के बीच से एक ऊँचे कद का, मोटे कोट में लिपटा व्यक्ति उतरता दिखाई दिया। सूट-बूट, सुनहरी घड़ी, महंगे जूते — देखकर कोई भी कह सकता था कि वह बहुत बड़ा आदमी है। आरिफ़ भागा-भागा उसके पास पहुँचा और बोला, “साहब, जूते पॉलिश करा लीजिए, पाँच रुपये लगेंगे।” वह आदमी बोला, “ह...
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किसी शहर के रेलवे स्टेशन पर एक भिखारी रहता था वह वहां आने जाने वाली रेलगाड़ियों में बैठे यात्रियों से भीख मांगकर अपना पेट भरता था एक दिन जब वह भीख मांग रहा था तो सूट बूट पहने एक लंबा सा व्यक्ति उसे दिखा उसने सोचा कि यह व्यक्ति बहुत अमीर लगता है इससे भीख मांगने पर यह मुझे जरूर अच्छे पैसे देगा वह उस लंबे व्यक्ति से भीख मांगने लगा भिखारी को देखकर उस लंबे व्यक्ति ने कहा तुम हमेशा मांगते ही रहते हो क्या कभी किसी को कुछ देते भी हो भिखारी बोला साहब मैं तो भिखारी हूं हमेशा लोगों से मांगता ही रहता हूं मेरी इतनी औकात कहां कि किसी को कुछ दे सकूं लंबा व्यक्ति बोला जब किसी को कुछ दे नहीं सकते तो तुम्हें मांगने का भी कोई हक नहीं है मैं एक व्यापारी हूं और लेनदेन में ही विश्वास करता हूं अगर तुम्हारे पास मुझे कुछ देने को हो तभी मैं तुम्हें बदले में कुछ दे सकता हूं इतना कहने के बाद वह लंबा आदमी ट्रेन में बैठकर चला गया इधर भिखारी उसकी कही गई बात के बारे में सोचने लगा उस लंबे व्यक्ति के द्वारा कही गई बात उस भिखारी के दिल में उतर गई वह सोचने लगा कि शायद मुझे भीख में अधिक पैसा इसीलिए नहीं मिलता क्योंकि...