अकबर इलाहाबादी के प्रसिद्द शेर
[1] "हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती।" [2] इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद, अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता. [3] दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ बाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ. [4] हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना हसीनों को भी कितना सहल है बिजली गिरा देना. [5] जो कहा मैं ने कि प्यार आता है मुझ को तुम पर हँस के कहने लगा और आप को आता क्या है. [6] पैदा हुआ वकील तो शैतान ने कहा लो आज हम भी साहिब-ए-औलाद हो गए. [7] मज़हबी बहस मैं ने की ही नहीं बफ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं. [8] रहता है इबादत में हमें मौत का खटका हम याद-ए-ख़ुदा करते हैं कर ले न ख़ुदा याद . [9] अकबर दबे नहीं किसी सुल्ताँ की फ़ौज से लेकिन शहीद हो गए बीवी की नौज से . [10] हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है ...