पुरापाषाण काल के बारे में बहुविकल्पीय प्रश्न और उत्तर

पुरापाषाण काल के बारे में बहुविकल्पीय प्रश्न और उत्तर

 

ये बहुविकल्पीय प्रश्न और उत्तर पुरापाषाण काल [Paleolithic Age] के बारे में आपके ज्ञान का परीक्षण करने और इस दिलचस्प विषय के बारे में जानने में आपकी मदद करेंगे।

पुरापाषाण काल पर 10 बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQ) और उत्तर:

  1. पुरापाषाण काल का अनुमानित समय क्या है? (a) 25 लाख वर्ष पूर्व - 12 हजार वर्ष पूर्व (b) 10 लाख वर्ष पूर्व - 5 हजार वर्ष पूर्व (c) 5 लाख वर्ष पूर्व - 2 हजार वर्ष पूर्व (d) 3 लाख वर्ष पूर्व - 1 हजार वर्ष पूर्व उत्तर: (a) 25 लाख वर्ष पूर्व - 12 हजार वर्ष पूर्व

  2. पुरापाषाण काल के लोगों का मुख्य व्यवसाय क्या था? (a) खेती-बाड़ी (b) शिकार और खाद्य संग्रहण (c) धातु का काम (d) बस्ती निर्माण उत्तर: (b) शिकार और खाद्य संग्रहण

  3. पुरापाषाण काल के औजार किन सामग्रियों से बनाए जाते थे? (a) मिट्टी और लकड़ी (b) धातु और हड्डी (c) पत्थर और हड्डी (d) कपड़ा और पत्ते उत्तर: (c) पत्थर और हड्डी

  4. भारत में पुरापाषाण काल के प्रमुख स्थल कौन से हैं? (a) लोथल और हड़प्पा (b) भीमबेटका और बर्जोम (c) मोहनजो-दारो और खैबर पख्तूनख्वा (d) सारनाथ और सोनपुर उत्तर: (b) भीमबेटका और बर्जोम

  5. पुरापाषाण काल के लोगों ने आग का उपयोग कब से करना शुरू किया? (a) 25 लाख वर्ष पूर्व (b) 15 लाख वर्ष पूर्व (c) 10 लाख वर्ष पूर्व (d) 5 लाख वर्ष पूर्व उत्तर: (b) 15 लाख वर्ष पूर्व

  6. पुरापाषाण काल की गुफा कला के विषय किस तरह के होते थे? (a) ज्यामितीय आकृतियां (b) शिकार के दृश्य (c) धार्मिक प्रतीक (d) जानवरों के चित्र उत्तर: (d) जानवरों के चित्र

  7. पुरापाषाण काल के अंत में जलवायु परिवर्तन का क्या प्रभाव पड़ा? (a) नदियों का स्तर कम हुआ (b) जंगल क्षेत्रफल कम हुआ (c) बर्फ का आवरण बढ़ा (d) उपरोक्त सभी उत्तर: (d) उपरोक्त सभी

  8. पुरापाषाण काल की सामाजिक संरचना कैसी थी? (a) बड़े शहरों का निर्माण (b) लिंग की असमानता (c) छोटे समूहों में जीवन (d) पदानुक्रमित शासन उत्तर: (c) छोटे समूहों में जीवन

  9. पुरापाषाण काल की कला का अध्ययन हमें मानव विकास के बारे में क्या बताता है? (a) मस्तिष्क के विकास का स्तर (b) संचार के तरीके (c) प्रतीकात्मक सोच की शुरुआत (d) उपरोक्त सभी उत्तर: (d) उपरोक्त सभी

  10. पुरापाषाण काल के इतिहास का अध्ययन क्यों महत्वपूर्ण है? (a) धार्मिक मान्यताओं को समझने के लिए (b) मानव सभ्यता के आरंभ को जानने के लिए (c) प्राचीन वस्तुओं का संग्रह करने के लिए (d) आधुनिक तकनीक का आविष्कार करने के लिए उत्तर: (b) मानव सभ्यता के आरंभ को जानने के लिए


The credit of the discovery of the first palaeolith in India which opened the field of prehistoric studies in the country goes to:

 

The credit of the discovery of the first palaeolith in India which opened the field of prehistoric studies in the country goes to:

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a) Robert Bruce Foote b) Hugh Falconer c) Alexander Cunningham d) Burkitt

Answer: a) Robert Bruce Foote

Robert Bruce Foote was a British geologist and archaeologist who discovered the first palaeolith in India in 1863. This discovery led to the opening of the field of prehistoric studies in the country.

  • Robert Bruce Foote's discovery of the first palaeolith in India stands as a landmark achievement in the country's archaeological history.
  • His work not only opened a new chapter in understanding India's past but also laid the foundation for a vibrant field of research that continues to this day.
  • While acknowledging the contributions of others who followed, it is Foote's pioneering spirit and groundbreaking discovery that earned him the credit for initiating this remarkable journey into India's prehistoric past.

kamal ka paryayvachi Shabd

kamal ka paryayvachi Shabd


कमल एक सुंदर जलीय पौधा है जो अपनी सुंदरता, पवित्रता और औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। यह भारत का राष्ट्रीय पुष्प है।

कमल का वैज्ञानिक नाम Nelumbo nucifera है। यह Nelumbonaceae परिवार से संबंधित है। यह पौधा एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है।

कमल का पौधा पानी में उगता है। इसके पत्ते बड़े और गोल होते हैं। इसके फूल सफेद, पीले, गुलाबी या लाल रंग के होते हैं। फूलों की पंखुड़ियाँ बड़ी और मुलायम होती हैं। फूलों की सुगंध बहुत ही सुखद होती है।

कमल के बीज बहुत ही पौष्टिक होते हैं। इनका उपयोग कई तरह के व्यंजनों को बनाने में किया जाता है। कमल के बीजों का तेल भी बहुत ही गुणकारी होता है। इसका उपयोग औषधीय purposes के लिए किया जाता है।

कमल का पौधा कई धार्मिक मान्यताओं से भी जुड़ा हुआ है। हिंदू धर्म में, कमल को पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक माना जाता है। भगवान विष्णु को कमल के आसन पर विराजमान दिखाया जाता है।

कमल एक बहुत ही महत्वपूर्ण पौधा है। यह अपनी सुंदरता, पवित्रता और औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। यह पौधा प्रकृति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

kamal ka paryayvachi hai :

  • पंकज : जल में उत्पन्न होने वाला पुष्प।
  • पुंज : फूलों का समूह।
  • जलज : जल में उगने वाला पुष्प।
  • केशर : कमल के फूल का रंग।
  • नलिन : कमल का एक प्रकार।
  • सरोज : कमल का एक प्रकार।
  • जलकुमुद : कमल का एक प्रकार।
  • पुष्पज : पुष्प से उत्पन्न हुआ।
  • तामरस : लाल कमल।
  • अमलतास : एक प्रकार का फूल जो कमल के समान होता है।
  • पुष्कर : एक पवित्र सरोवर जिसमें कमल बहुतायत में पाए जाते हैं।
  • अरविन्द : कमल का एक प्रकार।
  • रजनीगंधा : एक प्रकार का सुगंधित फूल जो कमल के समान होता है।
  • कजल : एक प्रकार का सुगंधित फूल जो कमल के समान होता है।
  • जलहंस : कमल के फूलों पर रहने वाला पक्षी।
  • कुमुदिनी : कमल का एक प्रकार।
  • ताराफ : एक प्रकार का कमल।
  • सहस्रपत्री : जिसका हजार पत्ते हों।
  • सरोवरनी : सरोवर में उत्पन्न होने वाली।
  • विश्वमय : संसार में व्याप्त।
  • नवनीत : ताजा फूल।
  • सुपुष्प : सुंदर फूल।
  • नीरज : जल से उत्पन्न हुआ।
  • कमलनयन : जिनके नेत्र कमल के समान हों।
  • सुरभि : सुगंधित।
  • कनकज : सोने के समान रंग का।
  • स्वर्णकुंज : सोने के समान रंग का पुष्प।
  • शर्करा : मीठा।
  • पवनकुमार : वायु का पुत्र।
  • ताम्राक्ष : तांबे के समान रंग के नेत्र वाले।
  • जलजीवन : जल में रहने वाला।
  • कमलस्थल : कमल के फूलों वाला स्थान।
  • तरुणज : युवा।
  • पुष्पराग : फूलों का पराग।
  • विकसित : विकसित।
  • पङ्कजाक्ष : कमल के समान रंग के नेत्र वाले।
  • जलमुख : जल में उत्पन्न हुआ।
  • रजित : रंगीन।
  • कुमुद्वन्त : कमल के समान।
  • जलधार : जल की धारा।
  • पद्मगंध : कमल के समान सुगंधित।
  • विकसित : विकसित।
  • कमलवल्लभ : कमल के प्रिय।
  • अन्तरज्योति : अंतर में स्थित प्रकाश।
  • सरोजासन : कमल के आसन पर विराजमान।
  • कन्हैया : कृष्ण का एक नाम।
  • अमल : निर्मल, शुद्ध।
  • नलकिनारा : नल के किनारे।
  • कमलोत्पल : कमल और उत्पल दोनों।
  • रजनीकांत : रात्रि में प्रकाशित।
  • अभिपद्म : कमल की भांति सुंदर।
  • संजीवनी : जीवन देने वाला।

kamal ka samanarthi shabd kya hota hai

  • पंकज

    • पंकज जल में उत्पन्न होने वाला एक सुंदर पुष्प है।
    • पंकज के फूलों से बनी माला बहुत सुंदर लगती है।
    • पंकज का फूल शांति और पवित्रता का प्रतीक है।
  • पुंज

    • कमल के पुंज सरोवर की सुंदरता को बढ़ाते हैं।
    • कमल के पुंजों में से एक कमल का फूल चुनकर मैंने उसे अपने बालों में सजाया।
    • कमल के पुंजों से बनी माला बहुत सुगंधित होती है।
  • जलज

    • जलज का फूल जल में उगता है, लेकिन वह स्वच्छता और पवित्रता का प्रतीक है।
    • जलज के फूलों से बनी माला बहुत सुंदर और आकर्षक होती है।
    • जलज का फूल शांति और समृद्धि का प्रतीक है।
  • केशर

    • कमल का फूल केशर के रंग का होता है।
    • केशर का रंग बहुत ही सुंदर और आकर्षक होता है।
    • केशर का उपयोग कई तरह के व्यंजनों को बनाने में किया जाता है।
  • नलिन

    • नलिन एक प्रकार का कमल है जो बहुत ही सुंदर और सुगंधित होता है।
    • नलिन के फूलों से बनी माला बहुत ही आकर्षक लगती है।
    • नलिन का फूल शांति और समृद्धि का प्रतीक है।
  • सरोज

    • सरोज कमल का ही एक प्रकार है जो बहुत ही सुंदर और सुगंधित होता है।
    • सरोज के फूलों से बनी माला बहुत ही आकर्षक लगती है।
    • सरोज का फूल शांति और समृद्धि का प्रतीक है।
  • जलकुमुद

    • जलकुमुद एक प्रकार का कमल है जो बहुत ही सुंदर और सुगंधित होता है।
    • जलकुमुद के फूलों से बनी माला बहुत ही आकर्षक लगती है।
    • जलकुमुद का फूल शांति और समृद्धि का प्रतीक है।
  • पुष्पज

    • कमल एक पुष्पज पौधा है।
    • पुष्पज पौधों से बनी माला बहुत ही सुंदर और आकर्षक लगती है।
    • पुष्पज पौधे प्रकृति की सुंदरता को बढ़ाते हैं।
  • तामरस

    • तामरस एक प्रकार का कमल है जो लाल रंग का होता है।
    • तामरस का फूल बहुत ही सुंदर और आकर्षक होता है।
    • तामरस का फूल प्रेम और रोमांस का प्रतीक है।
  • अमलतास

    • अमलतास एक प्रकार का फूल है जो कमल के समान होता है।
    • अमलतास के फूल बहुत ही सुंदर और आकर्षक होते हैं।
    • अमलतास का फूल प्रेम और रोमांस का प्रतीक है।
  • पुष्कर

    • पुष्कर एक पवित्र सरोवर है जिसमें कमल बहुतायत में पाए जाते हैं।
    • पुष्कर सरोवर एक धार्मिक स्थल है।
    • पुष्कर सरोवर में कमल के फूलों की सुंदरता अद्भुत होती है।
  • अरविंद

    • अरविंद एक प्रकार का कमल है जो बहुत ही सुंदर और सुगंधित होता है।
    • अरविंद का फूल शांति और समृद्धि का प्रतीक है।
    • अरविंद का फूल प्रेम और रोमांस का प्रतीक है।

kamal ka sanskrit : कमल को संस्कृत में 'पद्म' (पद्म) कहा जाता है।

Adolf Hitler | Biography, Rise to Power, History and Facts

Adolf Hitler | Biography, Rise to Power, History & Facts

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अडोल्फ हिटलर का जन्म और प्रारंभिक जीवन :

  • हिटलर का जन्म 20 अप्रैल 1889 को ब्रौनौ एम इन में हुआ था, जो उस समय ऑस्ट्रिया-हंगरी का हिस्सा था (आज का ऑस्ट्रिया)।
  • वह अलोइस हिटलर और उनकी तीसरी पत्नी क्लारा पोल्ज़ के छह बच्चों में चौथे थे।
  • उनकी बचपन में घर बदलना आम था, जो ऑस्ट्रिया और जर्मनी के बीच होता रहा।
  • उनके पिता ने उन्हें सख्त अनुशासन के साथ पाला, जिसके कारण उनके बीच अक्सर झगड़े होते थे।

हिटलर का बदलता व्यक्तित्व:

  • माना जाता है कि हिटलर के छोटे भाई एडमंड की मृत्यु ने उन पर गहरा प्रभाव डाला।
  • उनकी माँ की मृत्यु के बाद, उनका व्यक्तित्व एक खुशमिजाज़ लड़के से गुस्सेल और अलग-थलग पड़ने वाले किशोर में बदल गया।
  • उनकी बहन पाउला ने याद किया कि वह अक्सर उनसे बदमाशी करते थे।

शिक्षा और जर्मन राष्ट्रवाद:

  • उनके पिता चाहते थे कि वह सीमा शुल्क अधिकारी बनें, लेकिन हिटलर कलाकार बनना चाहते थे।
  • इस असहमति के कारण, उन्हें लिंज़ के रियलशूले में भेज दिया गया, जहां उन्होंने जानबूझकर खराब प्रदर्शन किया।
  • इस समय के दौरान, वह जर्मन राष्ट्रवादी विचारों से प्रभावित हुए और ऑस्ट्रियाई साम्राज्य के प्रति विरोध व्यक्त करने लगे।

पिता की मृत्यु और आगे का रास्ता:

  • उनके पिता के 1903 में अचानक होने के बाद, उनकी पढ़ाई और भी खराब हो गई और स्कूल छोड़ने की अनुमति मिली।
  • स्टीयर में रियलशूले में दाखिला लिया, जहां उनका प्रदर्शन बेहतर हुआ।
  • 1905 में, अंतिम परीक्षा पास करने के बाद, उन्होंने बिना किसी स्पष्ट कैरियर की योजना के स्कूल छोड़ दिया।

Early adulthood in Vienna and Munich :

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  • 1907 में, हिटलर ने लिनज़ छोड़ दिया और वित्तीय मदद से वियना में कला का अध्ययन करने गए।
  • उन्हें वियना की ललित कला अकादमी में दो बार प्रवेश से वंचित कर दिया गया।
  • 21 दिसंबर 1907 को उनकी माँ की 47 वर्ष की आयु में स्तन कैंसर से मृत्यु हो गई।
  • 1909 तक, हिटलर के पास पैसे खत्म हो गए और उन्हें बेघरों के आश्रय और एक पुरुष छात्रावास में रहना पड़ा।
  • उन्होंने मजदूरी करके और वियना के दर्शनीय स्थलों के water colors बेचकर गुजारा किया।
  • इस दौरान, उनके मन में Architecture और संगीत के प्रति जुनून बढ़ा।
  • वियना में हिटलर पहली बार नस्ली विचारधारा के संपर्क में आया।
  • मेयर कार्ल लूगर जैसे लोकलुभावन नेताओं ने यहूदी विरोधी भावना का इस्तेमाल किया।
  • जर्मन राष्ट्रवाद हिटलर के निवास स्थान मारियाहिलफ जिले में व्यापक रूप से प्रचलित था।
  • Georg Ritter von Schönerer और मार्टिन लूथर से हिटलर बहुत प्रभावित थे।
  • हिटलर ने उन Local Newspapers को पढ़ा जो पूर्वाग्रह को बढ़ावा देते थे और पूर्वी यूरोपीय यहूदियों के आगमन के बारे में ईसाईयों के डर का इस्तेमाल करते थे।
  • हिटलर ने ह्यूस्टन स्टीवर्ट चेम्बरलेन, चार्ल्स डार्विन, फ्रेडरिक नीत्शे, गुस्तावे ले बॉन और आर्थर शोपेनहॉर जैसे दार्शनिकों और सिद्धांतकारों के विचारों को भी पढ़ा।
  • हिटलर के यहूदी विरोधी विचारों की उत्पत्ति और विकास पर बहस होती है।
  • कुछ इतिहासकार मानते हैं कि वह वियना में रहने के दौरान ही यहूदी विरोधी बन गया था, जबकि अन्य का मानना है कि यह प्रथम विश्व युद्ध के बाद यहूदी विरोधी हुआ था।
  • 1913 में, हिटलर अपने पिता की संपत्ति का अंतिम हिस्सा लेकर म्यूनिख चला गया।
  • 1914 में, उसे ऑस्ट्रो-हंगेरियन सेना में भर्ती कर लिया गया, लेकिन उसकी सेवा के लिए उसे अयोग्य पाया गया।
  • बाद में हिटलर ने दावा किया कि वह सेना में सेवा नहीं करना चाहता था क्योंकि उसमें विभिन्न जातियों का मिश्रण था और वह ऑस्ट्रिया-हंगरी के साम्राज्य के पतन को आसन्न मानता था।

मुख्य बिंदु:

  • हिटलर का वियना में रहना आर्थिक संघर्ष और कलात्मक महत्वाकांक्षाओं से भरा था।
  • वहां वह नस्ली और राष्ट्रवादी विचारधारा के संपर्क में आया, जो बाद में उसके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
  • हिटलर के यहूदी विरोधी विचारों की उत्पत्ति पर विवाद है, लेकिन यह स्पष्ट है कि वियना में उनका अनुभव इस पर किसी न किसी तरह से प्रभाव डालता है।

World War I

  • 1914 में युद्ध शुरू होने पर, हिटलर म्यूनिख में रह रहा था और वह स्वेच्छा से बवेरियन सेना में भर्ती हुआ।
  • हालांकि, एक ऑस्ट्रियाई नागरिक के रूप में, उसे वापस ऑस्ट्रिया भेज दिया जाना चाहिए था, लेकिन अधिकारियों की एक गलती के कारण वह सेवा करने में सक्षम हुआ।
  • वह पश्चिमी मोर्चे पर एक फ्रंट-लाइन डिस्पैच रनर के रूप में सेवा करता था, लेकिन  उसनेअधिकतर समय regimental headquarters में बिताया था।
  • वह 1914 में Ypres की पहली लड़ाई में मौजूद था और बहादुरी के लिए आयरन क्रॉस, सेकेंड क्लास से सम्मानित किया गया था।

युद्ध का प्रभाव:

  • युद्ध के दौरान हिटलर ने अपने कलात्मक काम को जारी रखा और सेना के एक अखबार के लिए कार्टून और निर्देश बनाए।
  • 1916 में सोम्मे की लड़ाई के दौरान वह घायल हो गया और अस्पताल में लगभग दो महीने बिताए।
  • 1917 और 1918 में वह Arras और Passchendaele की लड़ाइयों में मौजूद था और उसे ब्लैक वाउंड बैज और आयरन क्रॉस, फर्स्ट क्लास से सम्मानित किया गया।
  • 1918 में मस्टर्ड गैस के हमले में वह अस्थायी रूप से अंधा हो गया और अस्पताल में भर्ती हो गया। वहाँ उसे जर्मनी की हार का पता चला और इस खबर के बाद उसे फिर से अंधेपन का दौरा पड़ा।

हिटलर का दृष्टिकोण:

  • हिटलर ने युद्ध को "सबसे बड़ा अनुभव" बताया और उसके कमांडिंग अधिकारियों ने उसकी बहादुरी की प्रशंसा की।
  • युद्ध के अनुभव ने उसकी जर्मन देशभक्ति को मजबूत किया और 1918 में जर्मनी के हार से वह स्तब्ध था।
  • युद्ध के अंत से उसका असंतोष उसकी विचारधारा को आकार देने लगा।
  • अन्य जर्मन राष्ट्रवादियों की तरह, उसने "डॉल्चस्टॉसलेजेंडे" यानि पीठ में छुरा घोंपने के मिथक में विश्वास किया, जिसमें दावा किया गया था कि जर्मन सेना को "घर के मोर्चे पर" नागरिक नेताओं, यहूदियों, मार्क्सवादियों और युद्ध समाप्त करने वाले समझौते पर हस्ताक्षर करने वालों द्वारा "पीठ में छुरा घोंपा गया था"।
  • वर्साय की संधि ने जर्मनी को अपने कई क्षेत्रों को छोड़ने और राइनलैंड को ध्वस्त करने के लिए बाध्य किया। इस संधि ने आर्थिक प्रतिबंधों को लागू किया और देश पर भारी क्षतिपूर्ति लगाई। कई जर्मनों ने संधि को एक अन्यायपूर्ण अपमान के रूप में देखा। वे विशेष रूप से अनुच्छेद 231 पर आपत्ति जताते थे, जिसे उन्होंने युद्ध के लिए जर्मनी को जिम्मेदार घोषित करने के रूप में व्याख्या किया था।
  • वर्साय की संधि और युद्ध के बाद जर्मनी में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थितियों का फायदा बाद में हिटलर ने राजनीतिक लाभ के लिए उठाया।

मुख्य बिंदु:

  • हिटलर ने पश्चिमी मोर्चे पर एक डिस्पैच रनर के रूप में सेवा की और उसे बहादुरी के लिए सम्मानित किया गया।
  • युद्ध ने उसकी जर्मन देशभक्ति को मजबूत किया और हार से वह स्तब्ध था।
  • युद्ध के अंत से उसका असंतोष "डॉल्चस्टॉसलेजेंडे" में विश्वास और वर्साय की संधि के प्रति नाराजगी में प्रकट हुआ।
  • इन अनुभवों ने बाद में उसकी राजनीतिक विचारधारा को आकार दिया। 

Entry into politics :

  • पहला विश्व युद्ध के बाद, हिटलर म्यूनिख लौट आए। 
  • औपचारिक शिक्षा या करियर की संभावनाओं के बिना, वह सेना में ही रहे। 
  • जुलाई 1919 में, उन्हें रीचस्वेहर के एक ऑफ़क्लारुंग्सकॉमैंडो (टोही इकाई) के वेरबिंडुंग्समैन (खुफिया एजेंट) के रूप में नियुक्त किया गया, जिसे अन्य सैनिकों को प्रभावित करने और जर्मन वर्कर्स पार्टी (डीएपी) में घुसपैठ करने का काम सौंपा गया था।
  • 12 सितंबर 1919 को एक डीएपी बैठक में, पार्टी के अध्यक्ष एंटोन ड्रेक्सलर हिटलर के भाषण कौशल से प्रभावित हुए। उन्होंने उन्हें अपने पैम्फलेट "मेरा राजनीतिक जागरण" की एक प्रति दी, जिसमें यहूदी-विरोधी, राष्ट्रवादी, पूंजीवाद-विरोधी और मार्क्सवाद-विरोधी विचार शामिल थे। 
  • अपने सेना के वरिष्ठों के आदेश पर, हिटलर ने पार्टी में शामिल होने के लिए आवेदन किया, और एक सप्ताह के भीतर उन्हें पार्टी के सदस्य 555 के रूप में स्वीकार कर लिया गया (पार्टी ने सदस्यता की गिनती 500 से शुरू की थी ताकि यह धारणा बनाई जा सके कि वे बहुत बड़ी पार्टी हैं)। 
  • हिटलर ने यहूदी सवाल के बारे में अपना सबसे पहला लिखित बयान 16 सितंबर 1919 के एक पत्र में एडॉल्फ गेमलिच को दिया (जिसे अब गेमलिच पत्र के नाम से जाना जाता है)। पत्र में, हिटलर का तर्क है कि सरकार का लक्ष्य "यहूदियों को पूरी तरह से हटाना" होना चाहिए।
  • डीएपी में, हिटलर की मुलाकात डिट्रिच एकार्ट से हुई, जो पार्टी के संस्थापकों में से एक थे और गुप्त थुले सोसायटी के सदस्य थे। एकार्ट हिटलर के गुरु बन गए, उनके साथ विचारों का आदान-प्रदान किया और उन्हें म्यूनिख के व्यापक समाज से परिचित कराया।
  • अपने आकर्षण को बढ़ाने के लिए, डीएपी ने अपना नाम बदलकर नेशनलसोशलिस्टिस्चे ड्यूट्शे आर्बिटरपार्टेई (नेशनल सोशलिस्ट जर्मन वर्कर्स पार्टी (NSDAP)) कर लिया, जिसे बोलचाल में "नाज़ी पार्टी" के रूप में जाना जाता है। 
  • हिटलर ने पार्टी के बैनर को एक लाल पृष्ठभूमि पर एक सफेद घेरे में एक स्वस्तिक के रूप में डिजाइन किया। 
प्रारंभिक नाजी पार्टी में एडॉल्फ हिटलर का उदय:

  • आंतरिक तख्तापलट और पुनरुत्थान: जून 1921 में हिटलर की अनुपस्थिति के दौरान नाजी पार्टी में असंतोष उभरा, कुछ सदस्य जर्मन सोशलिस्ट पार्टी के साथ विलय का पक्ष ले रहे थे। हिटलर के लौटने पर, उनके इस्तीफे ने पार्टी के भविष्य को खतरे में डाल दिया। पार्टी की एकता बनाए रखने के लिए, हिटलर ने अध्यक्ष पद ग्रहण करने और मुख्यालय को म्यूनिख में बनाए रखने की शर्तों पर वापसी की।

  • निर्णायक सत्ता ग्रहण: पार्टी के भीतर विरोध के बावजूद, हिटलर तेजी से शक्ति संचय करते गए। 29 जुलाई को एक विशेष सम्मेलन में, पार्टी ने ड्रेक्स्लर के स्थान पर उन्हें निर्विवाद नेतृत्व प्रदान किया, 533 से 1 के भारी बहुमत से उनका समर्थन किया।

  • कथालेपक नेतृत्व और जनसमर्थन: हिटलर के भाषणों में जनता को लुभाने की असाधारण क्षमता थी। वह बड़ी कुशलता से समसामयिक मुद्दों को उठाते थे और आर्थिक कठिनाइयों के लिए बलि का बकरा ढूंढते थे, अक्सर यहूदियों को निशाना बनाते थे। उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व और भीड़ मनोविज्ञान की गहन समझ ने उनके आकर्षण को और बढ़ाया। इतिहासकारों ने बड़े आयोजनों में उनके वाक्पटुता और छोटे समूहों में उनकी दृष्टि के सम्मोहक प्रभाव को दर्ज किया है।

  • प्रारंभिक सहयोगी: शुरुआती दौर में, हिटलर को रुडोल्फ हेस, हर्मन गोइरिंग और अर्न्स्ट रोहम जैसे प्रमुख वफादारों का समर्थन प्राप्त था। रोहम विशेष रूप से नाजी अर्धसैनिक संगठन स्टर्माबटीलुंग के नेता के रूप में पार्टी की रक्षा और विरोधियों को दबाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।

  • यहूदी विरोधी विचारधारा: 24 फरवरी 1920 को पार्टी के 25-सूत्रीय कार्यक्रम में नाजी विश्वदृष्टि को उल्लिखित किया गया था। अल्ट्रानैशनलिज्म, वर्साय संधि का विरोध, पूंजीवाद का संदेह और कुछ समाजवादी विचारों के सम्मिश्रण के साथ, इस कार्यक्रम का केंद्रीय तत्व जर्मन राष्ट्रवाद था। हिटलर के लिए, इस कार्यक्रम का सबसे निर्णायक पहलू उसका कट्टर यहूदी-विरोधी रुख था।

नाजी पार्टी का पुनर्निर्माण :
  • पार्टी विघटन और हिटलर का पुनर्प्रवेश: जून 1921 में हिटलर की अनुपस्थिति के दौरान नाजी पार्टी में एक आंतरिक संघर्ष हुआ, जहां कुछ सदस्य नूरेमबर्ग स्थित जर्मन सोशलिस्ट पार्टी के साथ विलय का प्रयास कर रहे थे। हिटलर के वापसी पर, उन्होंने अपने इस्तीफे के साथ पलटवार किया। पार्टी के विघटन की संभावना को पहचानते हुए, सदस्यों ने उनके नेतृत्व को बनाए रखने के लिए दबाव डाला। 26 जुलाई को, हिटलर ने पार्टी अध्यक्ष के रूप में ड्रेक्स्लर को हटाने और म्यूनिख में मुख्यालय बनाए रखने की शर्तों पर पुनर्प्रवेश किया।

  • सत्ता का समेकन: पार्टी के कुछ सदस्य हिटलर के उदय से असंतुष्ट थे। उन्होंने हर्मन एसेर को निष्कासित कर दिया और हिटलर पर पार्टी के प्रति विश्वासघात का आरोप लगाते हुए पर्चे छपवाए। हिटलर ने बड़े सार्वजनिक भाषणों के माध्यम से आरोपों का खंडन किया और जनसमर्थन हासिल किया। अंततः, 29 जुलाई को एक विशेष सम्मेलन में उन्हें 533 से 1 के वोट के अंतर से पार्टी अध्यक्ष चुन लिया गया।

  • करिश्माई वक्तृत्व और जनसमर्थन: हिटलर अपनी आकर्षक और भावुकपूर्ण वक्तृत्व शैली के लिए प्रसिद्ध थे। वह आम जनता के आर्थिक संकटों को संबोधित करते हुए उनके दुखों का कारण बने समूहों, विशेषकर यहूदियों, को बलि का बकरा बनाते थे। उन्होंने व्यक्तिगत चुंबकीयता और भीड़ मनोविज्ञान के गहन ज्ञान का उपयोग अपने भाषणों को प्रभावी बनाने के लिए किया। इतिहासकारों ने उनके भाषणों के सम्मोहनकारी प्रभाव और छोटे समूहों में नज़रों के चुंबकीय आकर्षण पर भी टिप्पणी की है।

  • प्रारंभिक समर्थक: हिटलर के शुरुआती समर्थकों में रुडोल्फ हेस, हर्मन गोइरिंग और अर्न्स्ट रोहम शामिल थे। रोहम नाजी पार्टी के अर्धसैनिक संगठन स्टर्माबटीलुंग के कमांडर बने, जिसने पार्टी सभाओं की रक्षा की और राजनीतिक विरोधियों पर हमले किए।

  • यहूदी विरोधी विचारधारा: नाजी पार्टी के 25-सूत्रीय कार्यक्रम में, 24 फरवरी 1920 को पार्टी के सिद्धांतों को संक्षेप में प्रस्तुत किया गया था। यह कार्यक्रम एक सुसंगत विचारधारा का प्रतिनिधित्व नहीं करता था, बल्कि जर्मन राष्ट्रवाद के विचारों जैसे अल्ट्रानैशनलिज्म, वर्साय की संधि का विरोध, पूंजीवाद का अविश्वास और कुछ समाजवादी विचारों का एक मिश्रण था। हिटलर के लिए, कार्यक्रम का सबसे महत्वपूर्ण पहलू इसका कट्टर यहूदी विरोधी रुख था। उन्होंने कार्यक्रम को प्रचार और पार्टी में लोगों को आकर्षित करने के लिए एक आधार के रूप में माना।

Dictatorship :-

"मुझे बेतुकी बातें करने वाले की तरह दिखने का जोखिम उठाते हुए मैं आपको बताता हूं कि राष्ट्रीय समाजवादी आंदोलन 1,000 साल तक चलेगा! ... यह मत भूलो कि कैसे 15 साल पहले लोगों ने मेरी हंसी उड़ाई थी, जब मैंने घोषणा की थी कि एक दिन मैं जर्मनी पर शासन करूंगा। वे अब भी उसी तरह हंसते हैं, जब मैं घोषणा करता हूं कि मैं सत्ता में बना रहूंगा! " - अडोल्फ हिटलर

स्पष्टीकरण:

  • यह उद्धरण 1934 में बर्लिन में एडॉल्फ हिटलर द्वारा एक ब्रिटिश संवाददाता से कहे गए शब्दों का अनुवाद है।
  • हिटलर अपनी पार्टी, नेशनल सोशलिस्ट जर्मन वर्कर्स पार्टी (एनएसडीएपी) के अस्तित्व और अपनी शक्ति के स्थायित्व के बारे में भविष्यवाणियां कर रहा है।
  • वह विश्वास व्यक्त करता है कि पार्टी सत्ता में बनी रहेगी और हजार साल तक जर्मनी पर शासन करेगी।
  • वह उन लोगों की तुलना करता है जो उसकी भविष्यवाणियों पर हंसते हैं, उन लोगों से जो 15 साल पहले उसकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं पर हंसते थे।
  • यह उद्धरण हिटलर के अहंकार और उसके शासन के स्थायित्व में उसके विश्वास को दर्शाता है। यह नाजी विचारधारा की उग्रवादी प्रकृति और उनके लोकतंत्र और विरोधियों के विनाश के लक्ष्य पर भी प्रकाश डालता है।

World War II [1939 - 1945]: Origins, Course of the War

World War II [1939 - 1945]: Origins, Course of the War

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द्वितीय विश्व युद्ध, जिसे द्वितीय विश्व युद्ध भी कहा जाता है, 1939 से 1945 तक चलने वाला एक वैश्विक संघर्ष था। दुनिया के अधिकांश देश, जिनमें सभी महाशक्तियां शामिल थीं, दो विरोधी सैन्य गठबंधनों के हिस्से के रूप में लड़े: मित्र राष्ट्र और धुरी राष्ट्र। कई भाग लेने वाले देशों ने अपनी सभी उपलब्ध आर्थिक, औद्योगिक और वैज्ञानिक क्षमताओं को इस कुल युद्ध में लगा दिया, जिससे नागरिक और सैन्य संसाधनों के बीच का अंतर धुंधला गया। विमानों ने एक प्रमुख भूमिका निभाई, जिससे आबादी केंद्रों की रणनीतिक बमबारी और युद्ध में उपयोग किए जाने वाले केवल दो परमाणु हथियारों को पहुंचाना संभव हुआ। यह इतिहास का अब तक का सबसे घातक संघर्ष था, जिसके परिणामस्वरूप 70 से 85 मिलियन लोग मारे गए थे। लाखों लोग नरसंहार, जिसमें नरसंहार भी शामिल है, के साथ-साथ भूखमरी, नरसंहार और बीमारी से मर गए। धुरी राष्ट्र की हार के बाद, जर्मनी, ऑस्ट्रिया और जापान पर कब्जा कर लिया गया, और जर्मन और जापानी नेताओं के खिलाफ युद्ध अपराध न्यायालयों का आयोजन किया गया।

युद्ध के कारणों पर बहस होती है; इसमें योगदान देने वाले कारकों में शामिल हैं यूरोप में फासीवाद का उदय, स्पेनिश गृहयुद्ध, द्वितीय चीन-जापानी युद्ध, सोवियत-जापानी सीमा संघर्ष, और प्रथम विश्व युद्ध के बाद के तनाव। द्वितीय विश्व युद्ध को आम तौर पर 1 सितंबर 1939 को शुरू हुआ माना जाता है, जब नाजी जर्मनी, एडॉल्फ हिटलर के नेतृत्व में, पोलैंड पर आक्रमण किया था। यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस ने 3 सितंबर को जर्मनी पर युद्ध की घोषणा की। अगस्त 1939 के मोलोटोव-रिबेंट्रोप पैक्ट के तहत, जर्मनी और सोवियत संघ ने पोलैंड को विभाजित किया था और फिनलैंड, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया और रोमानिया में अपने "प्रभाव के क्षेत्रों" को चिह्नित किया था। 1939 के अंत से 1941 के प्रारंभ तक, अभियानों और संधियों की एक श्रृंखला में, जर्मनी ने जर्मनी के साथ एक सैन्य गठबंधन में महाद्वीपीय यूरोप के अधिकांश हिस्से को जीत लिया या नियंत्रित किया। इटली, जापान और अन्य देशों के साथ धुरी। उत्तरी और पूर्वी अफ्रीका में अभियानों की शुरुआत के बाद, और 1940 के मध्य में फ्रांस के पतन के बाद, युद्ध मुख्य रूप से यूरोपीय धुरी शक्तियों और ब्रिटिश साम्राज्य के बीच जारी रहा, बाल्कन में युद्ध के साथ, हवाई युद्ध ब्रिटेन की लड़ाई, ब्रिटेन का ब्लिट्ज और अटलांटिक की लड़ाई। जून 1941 में, जर्मनी ने सोवियत संघ के आक्रमण में यूरोपीय धुरी शक्तियों का नेतृत्व किया, इतिहास के सबसे बड़े भूमि युद्ध थियेटर, पूर्वी मोर्चा खोल दिया।

World War II [1939 - 1945]: Origins, Course of the War

जापान का लक्ष्य पूर्वी एशिया और एशिया-प्रशांत पर हावी होना था, और 1937 तक चीन गणराज्य के साथ युद्ध में था। दिसंबर 1941 में, जापान ने दक्षिण पूर्व एशिया और मध्य प्रशांत के खिलाफ लगभग एक साथ आक्रमण के साथ अमेरिकी और ब्रिटिश क्षेत्रों पर हमला किया, जिसमें पर्ल हारबर पर एक हमला भी शामिल था, जिसके परिणामस्वरूप संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम ने जापान के खिलाफ युद्ध की घोषणा की।

Start and end dates

द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत यूरोप में 1 सितंबर 1939 को हुई थी जब जर्मनी ने पोलैंड पर आक्रमण किया था और दो दिन बाद 3 सितंबर 1939 को ब्रिटेन और फ्रांस ने जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा की थी। प्रशांत युद्ध की शुरुआत के लिए कई तिथियां दी जाती हैं, जैसे कि 7 जुलाई 1937 को द्वितीय चीन-जापानी युद्ध की शुरुआत, या 19 सितंबर 1931 को मंचूरिया पर जापानी आक्रमण। कुछ लोग ब्रिटिश इतिहासकार ए जे पी टेलर का अनुसरण करते हैं, जिन्होंने कहा कि चीन-जापानी युद्ध और यूरोप और उसके उपनिवेशों में युद्ध एक साथ हुए, और 1941 में ये दोनों युद्ध द्वितीय विश्व युद्ध बन गए। द्वितीय विश्व युद्ध की अन्य संभावित शुरुआती तिथियों में 3 अक्टूबर 1935 को इटली द्वारा इथियोपिया पर आक्रमण शामिल है। ब्रिटिश इतिहासकार एंटनी बीवर द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत को मई से सितंबर 1939 तक मंगोलिया और सोवियत संघ की सेनाओं के बीच लड़े गए खलखिन गोल के युद्ध के रूप में देखते हैं। कुछ लोग स्पेन के गृहयुद्ध को द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत या उसके प्रस्तावना के रूप में देखते हैं।

World War II [1939 - 1945]: Origins, Course of the War

युद्ध की समाप्ति की सही तिथि पर सभी सहमत नहीं हैं। उस समय आम तौर पर स्वीकार किया गया था कि युद्ध 15 अगस्त 1945 (वी-जे डे) के युद्धविराम के साथ समाप्त हुआ, न कि 2 सितंबर 1945 को जापान के औपचारिक आत्मसमर्पण के साथ, जिसने एशिया में युद्ध को आधिकारिक रूप से समाप्त कर दिया। 1951 में जापान और मित्र राष्ट्रों के बीच एक शांति संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे। 1990 में जर्मनी के भविष्य के बारे में एक संधि ने पूर्व और पश्चिम जर्मनी के पुनर्मिलन की अनुमति दी और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के अधिकांश मुद्दों को हल किया। जापान और सोवियत संघ के बीच कभी कोई औपचारिक शांति संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए गए थे, हालांकि दोनों देशों के बीच युद्ध की स्थिति 1956 के सोवियत-जापानी संयुक्त घोषणा से समाप्त हो गई थी, जिसने उनके बीच पूर्ण राजनयिक संबंधों को भी बहाल कर दिया था।

History

मध्य शक्तियों - ऑस्ट्रिया-हंगरी, जर्मनी, बुल्गारिया और ओटोमन साम्राज्य - की पराजय और 1917 में रूस में बोल्शेविक क्रांति के सफल होने से सोवियत संघ का उदय हुआ। इसके विपरीत, विजयी मित्र राष्ट्रों - फ्रांस, बेल्जियम, इटली, रोमानिया और ग्रीस - ने क्षेत्रीय अधिग्रहण किए, और पूर्व साम्राज्यों के पतन से नए राष्ट्र-राज्यों का निर्माण हुआ।
920 में पेरिस शांति सम्मेलन ने राष्ट्रों के संघ की स्थापना की। संगठन का मुख्य उद्देश्य सामूहिक सुरक्षा, सैन्य और नौसैनिक निरस्त्रीकरण, और शांतिपूर्ण वार्ता और मध्यस्थता के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय विवादों का समाधान करके सशस्त्र संघर्ष को रोकना था।
हालांकि, प्रथम विश्व युद्ध के बाद शांति की मजबूत इच्छा के बावजूद, यूरोप के कुछ देशों में अलगाववादी और बदले की भावना वाले राष्ट्रवाद का उदय हुआ। ये भावनाएं जर्मनी में विशेष रूप से प्रबल थीं, जहां वर्साय की संधि के निहित क्षेत्रीय, औपनिवेशिक और आर्थिक नुकसानों ने आक्रोश को जन्म दिया। संधि ने जर्मनी को राष्ट्रीय क्षेत्र का 13% और सभी विदेशी उपनिवेशों को खोने के लिए बाध्य किया, नए क्षेत्रों के अधिग्रहण को प्रतिबंधित किया, युद्ध क्षतिपूर्ति लगाई, और उसकी सशस्त्र बलों के आकार और क्षमता को सीमित किया।

यूरोप का राजनीतिक पुनर्निर्माण: प्रथम विश्व युद्ध के बाद का परिदृश्य

प्रथम विश्व युद्ध ने यूरोप के राजनीतिक मानचित्र को अपरिवर्तित कर दिया, 1919 में एक जटिल और नाजुक वैश्विक व्यवस्था को जन्म दिया। इस विश्लेषण में, हम उभरते हुए राष्ट्र-राज्यों, लीग ऑफ नेशन्स के प्रयासों, और कट्टरपंथी विचारधाराओं के उदय पर ध्यान देंगे, जो द्वितीय विश्व युद्ध के लिए एक भयावह पृष्ठभूमि तैयार करेंगे।

क्षेत्रीय पुनर्गठन और नए राष्ट्र-राज्यों का उदय:

  • केंद्रीय शक्तियों के पतन के परिणामस्वरूप, ऑस्ट्रिया-हंगरी, जर्मनी, और ओटोमन साम्राज्य के क्षेत्रों को पुनर्गठित किया गया। पोलैंड, चेकोस्लोवाकिया, और यूगोस्लाविया जैसे नए राष्ट्र-राज्य उभरे, यूरोप के राजनीतिक परिदृश्य को फिर से परिभाषित करते हुए।
  • रूस में बोल्शेविक क्रांति ने सोवियत संघ के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया, एक कम्युनिस्ट राज्य जो पूंजीवादी लोकतंत्रों के साथ वैचारिक टकराव का केंद्र बन गया।

लीग ऑफ नेशन्स: शांति बनाए रखने का प्रयास:

  • विजयी मित्र राष्ट्रों ने 1919 में पेरिस शांति सम्मेलन में लीग ऑफ नेशन्स की स्थापना की, जो भविष्य के युद्धों को रोकने का एक मंच प्रदान करने और सामूहिक सुरक्षा के माध्यम से शांति बनाए रखने का प्रयास था।
  • लीग ने सदस्य देशों के बीच शांतिपूर्ण विवाद समाधान और सामूहिक कार्रवाई का आह्वान किया, हालांकि, इसकी प्रभावशीलता कमजोरियों से ग्रस्त थी।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका का गैर-सदस्यता और सैन्य बल की अनुपस्थिति ने लीग की कार्यवाही को सीमित कर दिया, और राष्ट्रीय हितों को अक्सर सामूहिक कार्रवाई से ऊपर रखा गया।

इरेडेंटिज्म और रिवेंजिज्म: अलगाव और बदले की भावना:

  • हारने वाले राष्ट्रों में, खोए हुए क्षेत्रों को पुनः प्राप्त करने की इच्छा व्याप्त थी, विशेष रूप से जर्मनी में, जहां वर्साय की संधि की कठोर शर्तों ने गहरे असंतोष को जन्म दिया।
  • विजयी राष्ट्रों में भी, युद्ध के नुकसान और बदले की भावना मौजूद थी, जो यूरोप के राजनीतिक वातावरण में तनाव को बढ़ाता था।
  • ये राष्ट्रवादी विचारधाराएं, जिन्हें इरेडेंटिज्म और रिवेंजिज्म कहा जाता है, भविष्य के संघर्षों के लिए एक खतरनाक संबल बन गए।

निष्कर्ष:

प्रथम विश्व युद्ध के बाद का यूरोप एक नाजुक राजनीतिक वातावरण में प्रवेश किया। नए राष्ट्र-राज्यों के उद्भव, लीग ऑफ नेशन्स के प्रयासों की सीमाएं, और कट्टरपंथी विचारधाराओं का उदय, सभी ने द्वितीय विश्व युद्ध के लिए एक परिपक्व परिस्थिति तैयार की। यह विश्लेषण हमें केवल एक झलक देता है कि कैसे 1919 में वाये गए बीज 1939 में खून के एक और भयावह संघर्ष में खिल गए।

European occupations and agreements :

  • यूरोप में, जर्मनी और इटली अधिक आक्रामक होते जा रहे थे।
  • मार्च 1938 में, जर्मनी ने ऑस्ट्रिया को मिला लिया, जिससे फिर से अन्य यूरोपीय शक्तियों की बहुत कम प्रतिक्रिया हुई।
  • प्रोत्साहित होकर, हिटलर ने चेकोस्लोवाकिया के सुडेटनलैंड पर जर्मन दावों को दबाना शुरू किया, जो कि मुख्य रूप से जर्मन आबादी वाला क्षेत्र था।
  • जल्द ही, ब्रिटेन और फ्रांस ने ब्रिटिश प्रधान मंत्री नेविल चेम्बरलेन की तुष्टीकरण की नीति का अनुसरण किया और म्यूनिख समझौते में जर्मनी को यह क्षेत्र दे दिया, जो चेकोस्लोवाक सरकार की इच्छा के खिलाफ था, आगे कोई क्षेत्रीय मांग न करने के वादे के बदले में।
  • जल्द ही बाद में, जर्मनी और इटली ने चेकोस्लोवाकिया को हंगरी को अतिरिक्त क्षेत्र देने के लिए मजबूर किया, और पोलैंड ने चेकोस्लोवाकिया के ट्रांस-ओल्ज़ा क्षेत्र को हथिया लिया।
  • हालांकि समझौते से जर्मनी की सभी घोषित मांगें पूरी हो गई थीं, निजी तौर पर हिटलर गुस्से में था कि ब्रिटिश हस्तक्षेप ने उसे एक ही ऑपरेशन में पूरे चेकोस्लोवाकिया को जब्त करने से रोक दिया था।
  • बाद के भाषणों में हिटलर ने ब्रिटिश और यहूदी "युद्ध-प्रचारकों" पर हमला किया और जनवरी 1939 में ब्रिटिश नौसेना के वर्चस्व को चुनौती देने के लिए गुप्त रूप से जर्मन नौसेना के एक बड़े निर्माण का आदेश दिया।
  • मार्च 1939 में, जर्मनी ने शेष चेकोस्लोवाकिया पर आक्रमण किया और बाद में इसे जर्मन संरक्षक बोहेमिया और मोराविया और एक जर्मन समर्थक ग्राहक राज्य, स्लोवाक गणराज्य में विभाजित कर दिया।
  • हिटलर ने 20 मार्च 1939 को लिथुआनिया को भी एक अल्टीमेटम दिया, जिसमें क्लेपेडा क्षेत्र, जिसे पहले जर्मन मेमेललैंड कहा जाता था, को छोड़ने के लिए मजबूर किया गया।

मुख्य बिंदु:

  • जर्मनी और इटली ने आक्रामकता बढ़ाई और कई यूरोपीय क्षेत्रों को जब्त कर लिया।
  • ब्रिटेन और फ्रांस ने तुष्टीकरण की नीति अपनाई, लेकिन हिटलर अंततः इससे संतुष्ट नहीं था और और अधिक मांग कर रहा था।
  • जर्मनी ने 1939 में चेकोस्लोवाकिया पर कब्जा कर लिया और लिथुआनिया से एक क्षेत्र छीन लिया।
  • ये घटनाएं द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत की दिशा में महत्वपूर्ण कदम थीं।
  • हिटलर द्वारा स्वतंत्र शहर डेंजिग पर और अधिक दबाव डालने के कारण ब्रिटेन और फ्रांस ने पोलैंड की स्वतंत्रता के लिए अपना समर्थन देने का वादा किया।
  • जब इटली ने अप्रैल 1939 में अल्बानिया पर कब्जा कर लिया, तो रोमानिया और ग्रीस के राज्यों को भी यही गारंटी दी गई थी।
  • पोलैंड के लिए फ्रेंको-ब्रिटिश वचन के तुरंत बाद, जर्मनी और इटली ने "स्टील की संधि" के साथ अपने गठबंधन को औपचारिक रूप दिया।
  • हिटलर ने ब्रिटेन और पोलैंड पर जर्मनी को "घेरने" की कोशिश करने का आरोप लगाया और एंग्लो-जर्मन नौसेना समझौते और जर्मन-पोलिश गैर-आक्रामकता की घोषणा को रद्द कर दिया।
  • अगस्त के अंत में स्थिति एक संकट बन गई, क्योंकि जर्मन सैनिक पोलिश सीमा के खिलाफ जुटाए गए।
  • 23 अगस्त को सोवियत संघ ने जर्मनी के साथ एक गैर-आक्रमण संधि पर हस्ताक्षर किए, फ्रांस, ब्रिटेन और सोवियत संघ के बीच एक सैन्य गठबंधन के लिए त्रिपक्षीय वार्ता के ठप हो जाने के बाद।
  • इस संधि में एक गुप्त प्रोटोकॉल था जो जर्मन और सोवियत "प्रभाव क्षेत्रों" को परिभाषित करता था (पश्चिमी पोलैंड और लिथुआनिया जर्मनी के लिए; पूर्वी पोलैंड, फिनलैंड, एस्टोनिया, लातविया और बेस्सारबिया सोवियत संघ के लिए), और पोलिश स्वतंत्रता को जारी रखने का सवाल उठाया।
  • इस संधि ने पोलैंड के खिलाफ अभियान के लिए सोवियत विरोध की संभावना को निष्प्रभावी कर दिया और यह सुनिश्चित किया कि जर्मनी को प्रथम विश्व युद्ध की तरह दो-मोर्चे वाले युद्ध का सामना नहीं करना पड़ेगा।
  • इसके तुरंत बाद, हिटलर ने 26 अगस्त को हमले का आदेश दिया, लेकिन यह सुनकर कि ब्रिटेन ने पोलैंड के साथ एक औपचारिक पारस्परिक सहायता संधि का समापन किया है और इटली तटस्थ रहेगा, उसने इसे स्थगित करने का निर्णय लिया।
  • युद्ध से बचने के लिए ब्रिटिश अनुरोधों के जवाब में, जर्मनी ने पोलैंड पर मांगें कीं, जो संबंधों को खराब करने के लिए एक बहाने के रूप में काम करती थीं।
  • 29 अगस्त को, हिटलर ने मांग की कि एक पोलिश राजदूत तुरंत बर्लिन की यात्रा करे और डेंजिग के हस्तांतरण पर बातचीत करे, और पोलिश कॉरिडोर में एक जनमत संग्रह की अनुमति दे, जिसमें जर्मन अल्पसंख्यक अलगाव पर मतदान करेंगे।
  • ध्रुवों ने जर्मन मांगों का अनुपालन करने से इनकार कर दिया, और 30-31 अगस्त की रात को ब्रिटिश राजदूत नेविल हेंडरसन के साथ एक टकराव वाली बैठक में रिबेंट्रोप ने घोषणा की कि जर्मनी अपने दावों को खारिज मानता है।

पूर्ण स्वराज

पूर्ण स्वराज


प्रश्न: पूर्ण स्वराज का लक्ष्य कब घोषित किया गया?
  1. 1885
  2. 1906
  3. 1921
  4. 1929 
उत्तर: 19 दिसंबर, 1929
व्याख्या:
  • पूर्ण स्वराज का लक्ष्य भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 19 दिसंबर, 1929 को लाहौर अधिवेशन में घोषित किया था।
  • इस अधिवेशन के अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू थे।
  • पूर्ण स्वराज का अर्थ था भारत का ब्रिटिश शासन से पूर्ण स्वतंत्रता।
  • इस घोषणा ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा प्रदान की।